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सूने दृग

पानी भी पडता है देखो 

            अब यहां खूँन पर भारी है 
भोले भाले दृग सूने हैं 
             और हंसता अत्याचारी है 
शहजता शरलता कौदियों के 
      दाम बिकती यहां इमानदारी है 
अत्याचार होता है मूक दर्शक 
    बनकर देखती ये दुनिया सारी है 
मैं कहता तो कोई न सुनता 
             कोई कहे तो मैं न सुनता 
पूरे सामाज में देखो तो 
             फैलती जा रही बीमारी है 
भोले भाले दृग सूने हैं 
             और हंसता अत्याचारी है 
जिनको समझा था पसु प्रेमी 
                  अब वो बना मदारी है 
प्यार प्रेम करते थे संग हम 
                संग संग झूला झूला था 
जिनको हमने फूल था समझा 
                 अब वो बनी कटारी है 
भोले भाले दृग सूने हैं 
             और हंसता अत्याचारी है 
उदय बीर सिंह गौर 
खम्हौरा
बांदा 
उत्तर प्रदेश 

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3 Comments

Diksha Srivastava

27-Jan-2021 04:42 PM

nice

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Author Pawan saxena

27-Jan-2021 09:04 AM

👍👍👍

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Manish Kumar(DEV)

25-Jan-2021 10:21 PM

Awe6

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